होली Holi



कविता, होली 

होली 



अपनों का त्योहार है होली
रंगों की बौछार है होली
गैरों को भी अपना कर दे
ईश्वर की सौगात है होली

सब रंगे है रंगों में
सब मिल रहे हैं संगों में
कौन है चाचा, कौन भतीजा
सब नाच रहे हैं चंगों में

पहले कोई गोरा था
तो कोई काला था
कहाँ पर जीजा है तो
कहाँ पर साला था

यह होली का त्यौहार है, बंधु
जो गोरा था वह काला है
काला अब मतवाला है

था मैं भी एक कोरा कागज
फिर रंगों की बौछार हुई
एक बेरंगी अक्ष था मेरा
फिर सतरंगी तस्वीर तैयार हुई

फिर उड़ कर यह कोरा कागज
जीवन में जिन जिन से मिला
सब के रंगों के छींटे लेकर
फिर जाकर मैं उनसे मिला

संस्कारों की थीम देकर
पेंटिंग उसने बनाई है
गुण दोषों को भी खूब सजाया
वाह वाह बड़ी लुटाई है

धन्यवाद गुरुवर-पापा को
वाह, कोरे कागज से क्या तस्वीर बनाई है
जीवन का सार देने वाली
उस होली की तुम्हें बधाई है
उस होली की बधाई........

ashishosm0@gmail.com
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