माँ,धुंधला,जहन, अक्षर, आँसू , पतँग
माँ
आज फिर से
दिखा है
धुंधला हुआ
जहन में
मां का अक्षर
जब उन्होंने
मुझे
बेटा कहा
बरस बीत गए
उनको गुजरे
पर
आज उनका ख्याल
फिर से उतरा है
धुंधला हुआ
जहन में
मां का अक्षर
फिर से उकरा है
जिंदगी के दर्पण में
जब मैं जवानी में हूं
तब जाकर आज फिर से
बचपन उभरा है
धुंधला हुआ
जहन में
मां का अक्षर
फिर से उकरा है
पहले हल्की सी मां की डांट पर
रो दिया करता था मैं
आज उनकी ममता देख
आंख से एक आंसू उकरा है
धुंधला हुआ
जहन में
मां का अक्षर
फिर से उकरा है
लगता है, उड़ेला है
किसी ने
अमृत घुला गंगाजल
एक सूखते पेड़ में
जिसकी साख पर
कई दिनों बाद
एक अंकुर उभरा है
धुंधला हुआ
जहन में
मां का अक्षर
फिर से उकरा है
कटी पतँग की ड़ोर मे
एक तनाव फिर से उतरा है
धुंधला हुआ
जहन में
मां का अक्षर
फिर से उकरा है
फिर से उकरा है
फिर से उकरा है
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माँ,धुंधला,जहन, अक्षर, आँसू , पतँग